Tuesday, 17 March 2015

Bhakti Kaal

भक्तिकाल



मध्यकाल या भक्तिकाल में राधा और कृष्ण की प्रेमकथा को विस्तार मिला। अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन किया गया और कृष्ण के योद्धा चरित्र का नाश कर दिया गया। राधा-कृष्ण की भक्ति की शुरुआत निम्बार्क संप्रदाय, वल्लभ-संप्रदाय, राधावल्लभ संप्रदाय, सखीभाव संप्रदाय आदि ने की। निम्बार्क, चैतन्य, बल्लभ, राधावल्लभ, स्वामी हरिदास का सखी- ये संप्रदाय राधा-कृष्ण भक्ति के 5 स्तंभ बनकर खड़े हैं। निम्बार्क का जन्म 1250 ईस्वी में हुआ। इसका मतलब कृष्ण की भक्ति के साथ राधा की भक्ति की शुरुआत मध्यकाल में हुई। उसके पूर्व यह प्रचलन में नहीं थी?
पांचों संप्रदायों में सबसे प्राचीन निम्बार्क और राधावल्लभ दो संप्रदाय हैं। दक्षिण के आचार्य निम्बार्कजी ने सर्वप्रथम राधा-कृष्ण की युगल उपासना का प्रचलन किया। राधावल्भ संप्रदाय के लोग कहते हैं कि राधावल्लभ संप्रदाय के प्रवर्तक श्रीकृष्ण वंशी अवतार कहे जाने वाले और वृंदावन के प्राचीन गौरव को पुनर्स्थापित करने वाले रसिकाचार्य हित हरिवंशजी महाप्रभु के संप्रदाय की प्रवर्तक आचार्य राधा हैं।
इन दोनों संप्रदायों में राधाष्टमी के उत्सव का विशेष महत्व है। निम्बार्क व राधावल्लभ संप्रदाय का प्रमुख गढ़ वृंदावन है। निम्बार्क संप्रदाय के विद्वान व वृंदावन शोध संस्थान से जुड़े छीपी गली निवासी वृंदावन बिहारी कहते हैं कि कृष्ण सर्वोच्च प्रेमी थे। उनका व्यक्तित्व बहुआयामी था। वैष्णवाचार्यों ने भी अपने-अपने तरीकों से उनकी आराधना की है।
निम्बार्क संप्रदाय कहता है कि श्याम और श्यामा का एक ही स्वरूप हैं। भगवान कृष्ण ने अपनी लीलाओं के लिए स्वयं से राधा का प्राकट्य किया और दो शरीर धारण कर लिए। लेकिन यह तो भक्तिभाव में कही गई बाते हैं, इनमें तथ्य  कहां है? इतिहास अलौकिक बातों से नहीं बनता। ऐसी बातें करने वालों को झूठा माना जाता है और ऐसे ही लोग तो धर्म की प्रतिष्ठा गिराते हैं।

No comments:

Post a Comment

Share This

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...